ग़ज़ल
✍विनोद निराश
दास्तां-ए-ज़िंदगी, किताब लगे है ,
फुरकत-ए-यार इक अजाब लगे है।
फलक पे धुँधली सी तस्वीर उसकी,
दिल-ए-नाशाद, वो अहबाब लगे है।
माह-ए-कामिल , हुस्न-ए-जनाब,
चौदवी की रात का महताब लगे है।
कभी जिहन में, तो कभी ख्यालों में,
जागती आँखों का वो ख्वाब लगे है।
अब्र से निकलता वो महताब निराश,
हुस्न-ए-यार का जैसे हिजाब लगे है।
✍विनोद निराश, देहरादून - 09719282989
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