हर कदमों पर पिछड़
रहा हूं
✍नवीन हलदूणवी
जब से पैसा पास
हुआ है,
हमको भी आभास हुआ
है।
मानवता भी भूल गई है,
तब से सत्यानाश हुआ है।
फैल रही दुर्गंध जगत् में,
साहस का ही ह्रास
हुआ है।
मूक हुई कवियों की
वाणी,
कविरा तुलसी दास हुआ
है।
भूख समय पर कम लगती
है,
आम धरा का खास हुआ है।
हर कदमों पर पिछड़
रहा हूं,
आज "नवीन"
उदास हुआ है।
(2)
"असर न मुझ पर कोई होता"
जैसा हूं वैसा ही
दिखना,
जान रहा हूं कैसे
लिखना?
सच का साथ दिया है
जबसे,
भूल गया है चूं
चूं चिखना।
मुझ से कहती संजू
भाभी,
कलम न जाने जग में
बिकना।
पकड़ बड़ी मजबूत हुई
है,
सीख लिया है जबसे
टिकना।
मिल कर हमको लूट रहे
हैं,
जान गये हैं लीडर
मिकना।
असर न मुझ पर कोई
होता,
खूब
"नवीन" घड़ा है चिकना।
"अनुभव का ये गणित
किताबी"
अनुभव का ये गणित
किताबी,
थाम कलम की सुंदर
चाबी।
दुनिया जय - जय कार
करेगी,
गीत सुनाए सतलुज - राबी।
जीवन कुसुम खिलेगा
फिर से,
विकसित सपने ओंठ गुलाबी।
अपनेपन को भूल न
जाना,
पकड़ न लेना चाल
शराबी।
दीन - धर्म की बातें करना,
होगा फिर से ठाठ
नबावी।
बिगुल
"नवीन" बजाना फिर से,
भारत के हित तुरत
जबावी।
✍नवीन हलदूणवी
8219484701
काव्य - कुंज जसूर- 176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल
प्रदेश।
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