मानव पर आसन्न आपदा के निराकरण के लिए
अपने ऊपर सृष्टि के कष्ट का भार ग्रहण करते हैं बीजु देओ
✍डा. हिमेंद्र बाली
प्रधानाचार्य
हिमाचल की देव परम्पराएं प्रागैतिहासिक
काल से सामाजिक जीवन दर्शन को प्रभावित करती आ रहीं है।आज के दौर में करोना के
भयकारी फैलाव ने सारी मानवता का त्रस्त कर दिया है।ऐसे समय में जब मानवीय प्रयास
कम पड़ जाते हैं तो संसार की परम सत्ता की ओर त्राणार्थ सभी की नजरें आकृष्ट होती
हैं। प्रागैतिहासिक काल में प्रकृति के विविध स्वरूपों की पूजा के प्रचलन की
पृष्ठभूमि में इसकी अतुल शक्ति के गुण निहित था।
पूर्व वैदिक काल
में देवासुर के मध्य अग्नि और जल के लिए संघर्ष हुआ। असुर राज वृत्र इन्द्र के
अधीन अग्नि को प्राप्त करने के लिए आतुर था। वहीं देव वृत्र के आधीन जल को प्राप्त
करने के लिए संघर्ष रत थे। दोनों ही तत्व जीवनाधार थे।इसी प्रकार सागर मंथन के
माध्यम से सागर से अमूल्य रत्न प्राप्त करने के प्रयास में कालकूट नामक विष निकला
जिसके पृथ्वी पर गिर जाने से पूरी सृष्टि का अंत निश्चित
था। अत:सदाशिव ने विषपान कर सृष्टि को महाविनाश से बचाया।साहित्यकार डॉक्टर
हिमेंद्र बाली जी का कहना है कि कुल्लू के बिजली महादेव आज भी मानव पर आसन्न आपदा
के निराकरण के लिए अपने पार्थिव शरीर लिंग पर आकाशीय बिजली के वज्र को स्थान देकर
सृष्टि की आसन्न खतरे से रक्षण करते हैं। इसी तरह मण्डी की करसोग तहसील के सपनोट
गांव के समीपस्थ वीजू देव भी भयंकर आपदा के निवारणार्थ अपने ऊपर सृष्टि के कष्ट का
भार ग्रहण करते हैं।यहां ऐसी विकट स्थिति में वृष्टिविहीन बादलों से समीपस्थ
देवदार वृक्ष पर आकाशीय बिजली गिरती है जिसके जीवंत चिन्ह आज भी देखे जा सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के अंतर्गत
करसोग उप-मंडल के चुराग- माहूंनाग मार्ग पर सपनोट से लगभग एक किलोमीटर की दूरी तय
करने के बाद बांयी ओर धार-कांढलु मार्ग पर स्थित बल्हड़ो से लगभग एक किलोमीटर की
दूरी पर स्थित देओठी गांव चारों ओर से ढलानदार खेतों सेब के बागानों से सुशोभित एक
अत्यंत मनोरम गांव है।देओठी कांढी-सपनोट पंचायत का एक महत्वपूर्ण स्थल
है।साहित्यकार और शिक्षाविद डॉक्टर गिरधारी सिंह ठाकुर जी का कहना है कि ऐतिहासिक,सांस्कृतिक
और पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण देओठी में ऋषि परंपरा से संबधित "बीजु
देओ"का इतिहास प्रसिद्ध स्थल आज भी अपने पुराने वैभब,प्राचीन
कलाकृतियां अपने दामन में संजोए हुए है।बीजु देओ का यह मंदिर इस गांव व आसपास के
गांवों का श्रद्धा का केंद्र है।बीजु देओ से अनेक किंवदंतियां और चमत्कार जुड़े
है।
एक किंवदंती के आधार पर मंदिर समिति के पूर्व कुठियाला देवी सिंह जी का कहना है
कि बीजु देओ प्राकृतिक आपदा को रोकने के लिए स्वयं अनहोनी और जनपदोध्वंसक जैसी
बुरी घटनाओं को अपने ऊपर ले लेते हैं,जिसके कारण मंदिर के
बाई ओर स्थित देवदार के विशाल पर बिजली गिरने से गांव के प्राणियों की प्राकृतिक
विपदा से रक्षा हो जाती है।देवीसिंह जी का कहना है कि ऐसी दो घटनाएं उन्होंने अपने
जीवन काल में स्वयं देखी है।देओठी के चारों ओर के अनेकों गांवों वासियों ने भी
संकट काल में आसमान से इस पेड़ पर बिजली गिरते हुए साफ देखा है।"बीझी
बादलिए"बिना बारिश वाले बादलों के देवदार के पेड़ पर आसमान से तेजी से कड़कती
हुई बिजली गिरती है और पेड़ पर आग लग जाती है,तथा कुछ समय
बाद यह देवकृपा से यह आग स्वयं शांत हो जाती है।आसमानी बिजली से जलने के निशान
देवदार के इस पेड़ पर आज भी स्पष्ट और प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं।यही कारण है कि
बीजु देओ बिजलेश्वर महादेव के नाम से भी जाने जाते हैं।बचपन से ही बीजु देओ की
भक्ति में लीन युवा गूर नवनीश का कहना है कि प्राकृतिक
आपदाएं हम इंसानो के प्रति प्रकृति का एक तरह का गुस्सा भी कहा जा सकता है।
मानव
द्वारा परिष्कृत तकनीक से बनाए कोरोना विषाणु से उत्पन्न यह संकट देवी-देवताओं की
कृपा से अवश्य टलेगा।ईश्वर के घर में देर है अंधेर नहीं।बिजु देओ के दर पर दूर-दूर
से श्रद्धालु अपनी मनौतियां मानने और अर्पित करने आते हैं तथा मनोवांछित फल पाकर
स्वयं को धन्य करते हैं।इतिहासकार और शिक्षाविद डॉक्टर हिमेंद्र बाली
हिम(नारकंडा-शिमला) का कहना है कि हिमाचल की देव परम्पराओं में देव गण हर वर्ष
स्वर्ग प्रवास के बाद जीव सृष्टि के लाभ हानि का वृतांत प्रजा को सुनाते
हैं।सम्भावित कई आपदाओं को रोकने के निमित्त अपने दैविक बल के प्रयोग का भी बखान
करते हैं. परन्तु मानव अपनी स्वार्थसिद्धि में इस कदर निरत है कि वह देवगत चेतावनी
को भी हल्के में लेकर निश्चिंत हो जाता है। आज की आगत विकट स्थिति भी हमारी
अनीश्वरीय मनोदशा के कारण है।हम बौदिकवाद के अंहम में इस कदर मदहोश हैं कि परम
सत्ता की विराटता और उसके द्वारा रचित दृश्यमान जगत धारणा उसे ढकोसला मात्र लगता
है। आज करोना की असाध्य महामारी ने यह सिद्ध कर दिया है कि मानव की बौदिक क्षमता
और भौतिक सम्पति जीवन की अमूल्यता के आगे अर्थहीन और श्रीहीन है। आवश्यकता तो इस
बात की है कि हम जीवन के शाश्वत सत्य को पहचाने जो अखण्ड निष्ठा, संवेदना और श्रद्धा पर अवलंबित है।हमारी देव संस्कृति ने सदैव सत्य को
प्रतिष्ठित किया है।
अगाद श्रद्धा से मुक्ति और भुक्ति सम्भव है। पर दुखद तो यह है
कि आज धर्म के नाम पर प्रचार और पाखण्ड फल फूल रहा है. पाखण्डी चमत्कार का प्रचार
कर भोली जनता की धार्मिक भावना का बलात्कार कर रहे है। इस षडयंत्र से न हमारे
मंदिर बचे हैं और न ही धार्मिक संस्थाएं।घर्म जीवन का आधार है सृष्टि की पूर्ण आयु
घर्म के चरित्र पर टिकी है।आज के इस विकट दौर में मानव को शाश्वत जीवन मूल्यों को
तलाशने और उनके अनुशीलन का समय है. यदि अभी हम इस आपदा से सबक न ले पाए तो शेष
जीवन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पंगुता में व्यतीत करना
होगा। ऐसे में पग पग मृत्यु आखेट करती नजर आएगी।
जीवन के सारे ध्येय अनिर्णित ही
रहेगा।सुकेत संस्कृति साहित्य और जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डॉक्टर हिमेंद्र
बाली,व्यापार मंडल पांगणा के अध्यक्ष सुमित गुप्ता, युवा प्रेरक शिक्षक पुनीत गुप्ता आवाह्न वाली अंतिम
पंक्तियाँ में आप अपना,टी.सी ठाकुर, देव
समाज समिति करसोग के संस्थापक नरेंद्र ठाकुर और आनी कुल्लू से देवसंस्कृति संरक्षक
राज शर्मा , पांगणा के साहित्यकार डॉ जगदीश शर्मा
और भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के जिला प्रभारी जितेंद्र महाजन ने आह्वान
किया है कि आईए हम देव परम्पराओं के परिष्कृत रूप के मर्म को अनुभूत करते हुए
आस्था की आत्म शिखा को आलोकित करें।यदि हम ऐसा कर पाने में सक्षम हुए तो यह मानव
सृष्टि ही कायान्तरित हो जाएगी। आईए विश्वास और आस्था के श्रम सीकर से धरती पर
सद्भावना, सदिच्छा और संवेदना पुष्प उगाएं।
✍डा. हिमेंद्र बाली
प्रधानाचार्य
साहित्यकार कुमारसैन
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