इस शहर में कैसी छाई विरानी है
इस शहर में कैसी छाई विरानी है
गली मोहल्ले सडको में सुनसानी है
अपने ही छल रहे है अपनों
को
ये आपस में कैसी बेईमानी है
भेज रहे है आश्रम मे बूढों को
ये बच्चो की कैसी शैतानी है
दे रहा है सबको वह खाने पीने को
ये ऊपर वाले की कैसी मेहरबानी है
मिला रही महबूबा निगाहों को
ये कैसी प्यार की निशानी है
निराशा बुला रही है आशा को
ये आपस में कैसी कहानी है
लिख रहा राम मन के भावो को
ये गजल है या कोई कहानी है
✍आर के रस्तोगी
गुरुग्राम
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