संतो की हत्या संकेत ठीक नही
✍ब्रजेश सैनी
जहाँ देश कोरोना जैसी घातक महामारी से
जूझ रहा है केंद्र से लेकर राज्य सरकार लोगों की जान बचाने के लिए हर संभव मदद कर
रही है तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र के पालघर में दो संतो की पीट पीटकर उनकी निर्मम
हत्या कर दी गयी । ये संकेत भविष्य के लिए ठीक नही है । यह सनातन की रीढ़ पर चोट
पहुचीं है ये वही महाराष्ट्र है जहाँ कोरोना के सबसे ज्यादा
मामले है कड़ी सख्ती और लॉकडाउन के बीच यह खूनी साजिश कैसे हुई । साजिश थी या अफवाह
थी ठाकरे सरकार को इसकी तह तक जाने की जरूरत है और दोषियों को सख्त से सख्त कड़ी
सजा मिले । जिस तरह उन संतो को बेरहमी से पीटा जा रहा
था यह दृश्य देखने वाला हर कोई स्तब्ध रह गया । भीड़ और पुलिस तनाशबीन बनी देखती
रही ।
आदिकाल से संतो को पूजने वाला देश भारत में संतो को भीड़ के बीच मौत के घाट
उतार दिया जाये । यह देश के माथे पर कलंक है उद्धव
ठाकरे जिनके पिता बाल ठाकरे जो हमेशा भगवा वस्त्र में नजर आते थे जिनकी छवि एक
कट्टर हिंदुत्व वाली थी आज वही सरकार सत्ता पर बैठी हो और उसी के गढ़ में संतो की
हत्या हो जाये यह बाल ठाकरे होते तो ऐसा करने वाले के हाथ कांपते । उद्धव सरकार की
छवि सत्ता का लोभ पाने के बाद बदल रही है । हमने ऐसी ही भीड़ का काला चेहरा पहले भी
देखा है जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर किया है कि क्या भीड़तंत्र के आगे
लोकतंत्र नतमस्तक हो चुका है । भीड किसी भी रूप में आ सकती है तो उस पर लगाम क्यों
नही लगाई जाती । भीड़ के पीछे की ताकतों को शाशन और प्रशासन क्यों नही कुचलता ।
कभी वो समय भी हुआकरता था जब देश भर के
और दुनिया भर के प्रताड़ित साधू , संत और हिन्दू समाज के लोगमहाराष्ट्र
के उन गौरवशाली योद्धाओं से सुरक्षा पाते थे जिनकी भुजाओं और तलवारोंके दम पर अब
तक हिन्दू संस्कृति अपने मूल रूप में बची हुई है. ध्यान देने योग्य हैकि कभी संतो
को सम्मान और सुरक्षा देने वाले महाराष्ट्र के पालघर स्थित तलासरीअहमदाबाद हाईवे
पर साधु-संतों कीगाड़ी पर कुछ संदिग्ध लोगों ने भीषण
और सोच समझ कर ऐसा हमला किया कि उसमे 2 संतो की हत्या हो गई
और उन्हें ले जा रहा ड्राइवर भी उसी हमले में मारा गया है।
लाक डाउन में पुलिस की गश्त की पोल भी
यहाँ खुलती दिखाई दीक्योकि इस पूरे हंगामे में काफी देर तक पुलिस का कोई नामोनिशान
तक नहीं था । शाशन - प्रशासन अब इसकी जांच के प्रति खानापूर्ति करेगा । इसे ठंडे
बस्ते में डालकर ऊर्ध्व साँस लेते हुए गहन निंद्रा में सो जायेगा ।
वोट बैंक की विचारधारा और सत्ता लोभ की पार्टीयों के नेताओ
को तो पूछिए मत क्योकि
सत्तालोभ में वे अपना सबकुछ दांव लगा सकते है । उनके
लिए सत्ता ही सबकुछ है इसके सिवाय कुछ नही मिलता । हमारे देश की विडंबना रही है कि
घटना दूसरे समुदाय ने की थी नेताओ के सुर अलग क्यों हो जाते है । सबसे पहले
प्रतिक्रिया देख लीजिए । जब भी भीड़ की हिंसा में किसी एक समुदाय का व्यक्ति शिकार
हुआ तो बुद्धजीवियों , अपनी अपनी पार्टी के ज्ञानी ,
यहाँ तक की मीडिया यह सब घटना कैसे हुई किसने की , क्या मामला था इस पर सब चुप्पी साध लेते है लेकिन अपने लोगों के बचाव में ज्ञान
देना शुरू कर देते है।
निर्दोष व्यक्ति को मारने वाले
का बचाव ये लोग इतनी आसानी से कैसे कर लेते है देश की जनता किसी दूसरी सोच पर
पहुँचे उसके लिए पारदर्शिता जरूरी है शासन और प्रशासन ही जनता को पारदर्शी तरीके
से बताये । ये इलाका आदिवासियों और नक्सलियों का है,
बीते दिनों में यहां रहने वाले आदिवासी कई अफवाहों के चलते आने जाने
वाले लोगों पर हमला कर रहे थे। बीते दिनों पत्रकार और पुलिस पर भी हमले हुए थे। इस
इलाके में ये भी अफवाह थी कि कोरोना जा चुका है। गरीबी चरम पर है। बीते दिनों
बच्चा चोरी के कारण भी आने जाने वालों को पीटा जा रहा था। कहा जा रहा है कि साधुओं
की गाड़ी रोकी गई और आसपास की भीड़ जो अमूमन सड़कों के आसपास रहती थी, ने छीना झपटी शुरू की, पुलिस के आने के बाद भी वे
नहीं माने। पुलिस ने अपनी जान बचाने के लिए बीच-बचाव नहीं किया। चूंकि शासन और
प्रशासन दोनों अपने अपने बचाव में है।
घटना को छोटा
करने की सोच रहे है तो संदेह और गहराता है । उधर कल से टीवी पर मीडिया दो धड़ो में
बंटा है एक धड निगेटिव गढ़ रहा है की लोगों ने चोर समझकर मार डाला । उन्हें बच्चा
चोर समझ लिया । क्या इनमे से किसी ने जाकर वहां पूछा की मामला क्या है बिना जाने
हत्यारो को बचाने का प्रयास क्यों किया जा रहा है यह अपराध है वही पक्ष जो
अपराधियो को बचा रहा है वह प्रश्न कर रहा की लोकडाउन के बीच साधु निकले कई थे ।
प्रश्न यह क्यों नही किया जा रहा की लॉकडाउन के बीच इतनी भीड़ इकट्ठा कैसे हुई । वो
भी पुलिस की मौजूदगी में । इन सभी सवालों के जवाब जनता को शासन और प्रशासन दोनों
को देने होंगे । तभी जाकर न्याय मिलेगा ।
✍ब्रजेश सैनी
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