आज बलिदान दिवस पर विशेष
✍मनोज गौतम की पुस्तक
"क्रांतिदूत" (भगत सिंह के जीवन पर आधारित खंड काव्य) के कुछ अंश
खुद का खून बहा कर
ही इतिहास रचाया जाता है
चूम के फांसी का
फंदा ही देश बचाया जाता है
तलवारों के साये मे
ही ये नगमा गाया जाता है
स्वतन्त्रता बली
वेदी पर बस शीश चढ़ाया जाता है
देश की हालत बदतर थी
हर बच्चा भूखा नंगा था
भारत की फुलवारी का
हर कोना सूना बेरंगा था
27 सितम्बर 1907 गाँव का नाम चक बंगा था
सामान्य बालक नहीं
भगत बलिदानों की गंगा था
पाँच साल की उम्र मे
ही भगत बंदूकें बोने लगा
अँग्रेजी अत्याचार
सुन उसके मन मे कुछ होने लगा
आक्रोश मन मे पनपने
लगा धैर्य अपना खोने लगा
दर्द देश की दास्ताँ
का वह अपने मन मे ढोने लगा
बारह साल की उम्र मे
भगत पहुँच गया जलियाँवाला
मासूमों का खून देख
कर तन मन मे भड़की ज्वाला
खून से भीगी मिट्टी
को घर ले कर आया मतवाला
“साम्राज्यवाद का नाश
करुं” संकल्प शेर ने कर डाला
माँ ने पूछा भगत !
यह कैसी लाए हो मिट्टी
भगत बोले, बलिदानों
की याद दिलाएगी मिट्टी
मासूमों का खून है
इसमे मुझे जगाएगी मिट्टी
आज़ादी खून मांगती है
ये बात बताएगी मिट्टी
कहा भगत ने जान
न्यौछावर राष्ट्र के सम्मान पर
“धार क्रांति की तेज है
होती विचारों की सान पर’’
पूर्ण स्वतन्त्रता
वह है जब जुल्म न हो इन्सान पर
ये खुद ही हासिल
करनी होगी न छोड़ो भगवान पर
लेनिन,मार्क्स
,गोर्की को इस दीवाने ने खूब पढ़ा
गैरीबोल्डी,मैजिनी,बाकुनिन का इस पर नशा चढ़ा
क्रोपटकिन,,वलेयाँ,
ड़ेंनब्रीन,का मन मे विचार बढ़ा
पराधीनता के पत्थर
पर यूं आज़ादी का चित्र गढ़ा
क्रांति के बिना
आज़ादी एक कल्पना कोरी थी
हथियारों के अभाव मे
मुश्किल ये जोरा-जोरी थी
आज़ादी के हवन मे
आहुति बनी डकैती-चोरी थी
काँप गई अँग्रेजी
सत्ता जब हुई घटना काकोरी थी
अत्याचारों को भगत
दुनिया को दिखाना चाहते थे
दमन और अन्याय की हर
बात बताना चाहते थे
हकीकत काले क़ानूनों
की सामने लाना चाहते थे
अंधों को दिखाना और
बहरों को सुनाना चाहते थे
इस बम का उद्देश्य
किसी को मार गिराना नहीं रहा
हिंसा के बल पर कोई
आतंक फैलाना नहीं रहा
व्यवस्था बदलना था
लक्ष्य शोर मचाना नहीं रहा
मौका मिलने पर भी
मकसद भाग जाना नहीं रहा
सोची समझी चाल ने
उसको दिखाया बंदूक-बम वाला
उसका जीवन दर्शन था
सबको अधिकार सम वाला
दुनिया के इतिहास मे
उसके जैसा नहीं कोई दम वाला
गरीब मजदूर जवान के
खातिर वो ही था मरहम वाला
आज भी होता भगत सिंह
तो फांसी पर ही चढ़ना था
अंग्रेजों से नहीं
उसने तो व्यवस्था से ही लड़ना था
मन की आँखों से उसने
इन हालातों को पढ़ना था
इंकलाब के उस अंबर
से तो क्रांति को ही झड़ना था
अन्याय और अत्याचार
का शासन आज भी है
अंधा बहरा संवेदनशील
प्रशासन आज भी है
राजा की कुर्सी पर
बैठा दुशासन आज भी है
झूठ की जंजीरों मे
जकड़ा सिंहासन आज भी है
सत्ता की गलियों मे
सच का निर्वासन आज भी है
लालच मे झूठे तथ्यों
का प्रकाशन आज भी है
धर्म के नाम पर
पाखंडों का पद्मासन आज भी है
गरीब को मिले
मिलावटी घटिया राशन आज भी है
कहा भगत ने यूं तो
जीना चाहता हूँ मैं भी
मेरी मौत ही बन
पाएगी आज़ादी दीये का घी
जितना करना चाहता था
काम बकाया है अभी
उम्मीद है पूरी
दोस्तो !करोगे पूरा तुम सभी
भारत माँ की खातिर
अब तो मुझको जाना होगा
आने वाली नस्लें
सीखें ऐसा इतिहास रचाना होगा
अपने लहू से सींच
स्वतन्त्रता पुष्प खिलना होगा
देश रहे इसीलिए अपना
अस्तित्त्व मिटाना होगा
स्वतन्त्रता दीप
जलाने हेतु दे डाला अपना जीवन
हँसते-हँसते मतवाले
ने अर्पण कर दिया तन मन
उसके आगे आकाश झुका
धरा उस को करे नमन
अपने मकसद पर दे दी
जान ऐसी लगी उसे लगन
राजनीति मे नीति हो
ऐसा संविधान बनाएँ हम
धर्म के नाम पर देश
न टूटे एक समाधान बनाएँ हम
अत्याचार शोषण के
विरुद्ध मिलकर आवाज़ उठाएँ हम
आओ सच को सच कहने की
ताकत आज जुटाएँ हम
✍मनोज गौतम
करनाल
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