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राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्वपूर्ण पहलू |
राष्ट्रीय
शिक्षा नीति का प्रारूप शिक्षा विभाग द्वारा चर्चा के लिए प्रस्तुत किया गया हैI
इसमें अनेक ऐसे बिंदु हैं जो शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन के कारक बन सकते हैंI जिनमे से कुछ महत्वपूर्ण
बिंदु इस प्रकार है :-
(1) नाम
परिवर्तन : मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम पुनः
शिक्षा मंत्रालय करने का प्रस्ताव इस प्रारूप में हैI भारतीयता के
भाव को ध्यान में रखते हुए इस परिवर्तन का स्वागत किया जाना चाहिएI लेकिन इसके
साथ संस्कृति मंत्रालय भी जोड़ कर ‘शिक्षा और संस्कृति मंत्रालय’ ही इसका नाम हो
ऐसा उचित प्रतीत होता हैI दोनों मंत्रालय साथ जोड़ने से शिक्षा और संस्कार का कार्य अधिक परिणाम
कारी और परिपूर्ण हो जाएगाI
(2) राष्ट्रीय
शिक्षा आयोग : अनेक वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र की
मांग रही है कि शिक्षा का प्रबंधन और संचालन शिक्षकों और शिक्षाविदों के हाथ में
होना चाहिएI नई शिक्षा नीति के प्रारूप में यह
अनुशंसा की गई है कि राष्ट्रीय शिक्षा आयोग को अधिक स्वायत्त शक्तिशाली बनाया जाए
तथा इसके सदस्यों में कम से कम 75% शिक्षाविद रहेI राष्ट्रीय
शिक्षा आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगेI इसका उपाध्यक्ष किसी राष्ट्रीय ख्याति
प्राप्त विद्वान को ही बनाया जाना चाहिएI आयोग का कार्य केवल सुझाव देने वाला न
होकर कार्यपालिका के रूप में हो और परीक्षा तथा शिक्षा संबंधी नियंत्रण इसके अधीन होगेंI
(3) लचीलापन : शिक्षा की संरचना में लचीलापन अत्यंत महत्वपूर्ण हैI शिक्षा
नीति के प्रारूप में 5+3+3+4 की रचना
प्रस्तुत की गई हैI पूर्व प्राथमिक शिक्षा को भी जोड़ा गया हैI 9वीं से 12वीं को एकत्र सोचा गया हैI इस स्तर पर
विषय चुनाव में लचीले विकल्प प्रदान किए गए हैंI विज्ञान, वाणिज्य, कला शाखाओं के भेद को
मिटा कर मिश्रित विषय चयन का विकल्प भी रखा गया हैI 4 वर्षों में 40 विषय के गुणांक (क्रेडिट) प्राप्त करने
होंगेI इसमें 15 व्यावसायिक
विषय होने अनिवार्य हैI इस प्रावधान के लागू होने से शिक्षा का स्वरूप ही बदल जाएगाI उच्च
शिक्षा में भी स्नातक, पूर्व स्नातक शिक्षा का प्रावधान रखा हैI ‘मल्टीपल
एग्जिट’ का प्रावधान भी होI जैसे प्रथम वर्ष की शिक्षा पूरी करने पर यदि किसी को अध्ययन छोड़ना पड़े
तो उसे प्रमाणपत्र मिल सकेI द्वितीय वर्ष की शिक्षा पूर्ण करने पर डिप्लोमा तथा 3 वर्ष की शिक्षा पूर्ण करने पर पदवी या
डिग्री प्राप्त होI 4 वर्ष के
अध्ययन करने के बाद सम्मान पदवी या ऑनर्स डिग्री तथा सामान्य पदवी जिसने प्राप्त
की हो उसे 2 वर्ष का
स्नातक और जिसने 4 वर्ष की
उन्नत डिग्री प्राप्त कर ली हो उसे 1 वर्ष का परास्नातक तक पाठ्यक्रम करना
पड़ेi
(4) राष्ट्रीय
शिक्षा नीति : जनवरी 2015 में जब शिक्षा नीति पर कार्य प्रारंभ हुआ
तो इसे नई शिक्षा नीति कहा गया थाI किंतु यदि वास्तविक अर्थ में हम शिक्षा
के क्षेत्र में दूरगामी परिवर्तन करना चाहते हैं तो इस बार शिक्षा की नीति को
राष्ट्रीय शिक्षा नीति कहा जाना अधिक उचित हैI कस्तूरीरंगन समिति को शिक्षा नीति के
प्रारूप लेखन का दायित्व देते समय सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति शब्द प्रयोग
किया थाI इस समिति ने भी सही अर्थ में राष्ट्रीय प्रारूप समाज के सम्मुख रखा हैI यह प्रारूप
कई आयामों में सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय प्रारूप हैI पहली बार
इतनी बड़ी संख्या में व्यापक रूप से लोगों का सहभाग प्राप्त कर नीति का प्रारूप
बनाया गयाI एक लाख से अधिक गांवों में शिक्षा नीति पर चर्चा की गईI सांस्कृतिक
अर्थ में भी यह शिक्षा नीति का प्रारूप राष्ट्रीय हैI भारत की
मौलिक बातें शिक्षा नीति के प्रारूप में हमें दिखाई देती हैंI पुरानी विदेशी
शिक्षा नीति को पूर्णत परिवर्तित कर भारत केंद्रित राष्ट्र निर्माण कार्य शिक्षा
व्यवस्था के निर्माण की नींव इस प्रारूप में हमें स्पष्ट रूप से देखने को मिलती हैI यह सच्चे
अर्थ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति हैI
(5) भारतीय
भाषा : शिक्षा नीति के प्रारूप में भारतीय
भाषाओं के महत्व को अधोलिखित अवश्य किया हैI उच्च शिक्षा भी भारतीय भाषाओं में
उपलब्ध हो ऐसी अनुशंसा नीति करती हैI यह क्रांतिकारी सुधार हो सकता हैI
अभियांत्रिकी, चिकित्सा जैसे व्यवसायिक पाठ्यक्रम सहित सभी पाठ्यक्रमों में भारतीय
भाषाओं का विकल्प उपलब्ध कराना आवश्यक हैI इससे प्राथमिक कक्षाओं में भारतीय
भाषाओं का महत्व बढ़ जाएगाI यह बिंदु भाषा नीति के अध्याय से तो आया हैI किंतु इसे उच्च शिक्षा के अध्याय में भी
सम्मिलित करना आवश्यक हैI संस्कृत केवल अनेक भाषाओं में से एक न होकर सभी भाषाओं के शुद्ध अध्ययन
में उसका महत्व सर्वविदित हैI इस बिंदु को शिक्षा नीति की प्रस्तावना
एवं भाषा वाले अध्याय में तो लिखा गया है किंतु त्रिभाषा सूत्र को लागू करने से
सर्वाधिक अन्याय संस्कृत के साथ ही होता हैI प्रादेशिक भाषाओं और अंग्रेजी अनिवार्य
हो जाती हैंI तथा हिंदी भाषा क्षेत्र में हिंदी का आग्रह करने पर संस्कृत बाहर हो जाती
हैI अतः त्रिभाषा सूत्र के अलावा संस्कृत को भाषा विज्ञान की नीव मानकर योग के
समान पूर्व प्राथमिक से आठवीं कक्षा तक अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाएI
(6) शिक्षक : शिक्षक के पद का महत्व भारत में हमेशा से
रहा हैI जो गत कुछ वर्षों से कुछ मात्रा में कम
होता प्रतीत हो रहा हैI शिक्षकत्व समाज में पुन: प्रतिष्ठित होगा तो समाज समर्थ बनेगाI इस हेतु
शिक्षा नीति में दो उपाय सुझाए गए हैंI पहला अध्यापक-शिक्षा का व्यवसायिक स्वरूप तथा अनुबंध नियुक्ति पूर्ण
प्रतिबंधI वर्तमान में अध्यापक बनना सबसे अंतिम अंतिम विकल्प के रूप में देखा जाता
हैI शिक्षा नीति में कहा है कि बीएड के 2 वर्ष के पाठ्यक्रम को त्वरित बंद किया
जाए और केवल 4 वर्ष का
एकीकृत पाठ्यक्रम चलाया जाएI जिससे 12वीं के बाद संकल्पवान छात्र ही
अध्यापन शिक्षा में प्रवेश लेI वर्तमान में ‘शिक्षाकर्मी’, ‘गुरुजी’ के
नाम से जो दिहाड़ी पर शिक्षक हैंI वह काम तो शिक्षक का करते हैं किंतु
वेतन बहुत कम मिलता हैI अतः इस प्रावधान को बंद करना भी स्वागत योग्य प्रस्ताव हैI शिक्षक की
प्रतिष्ठा बढ़ाने में यह एक प्रभावी उपाय होगाI
(7) व्यवसायिक
शिक्षा : कौशल शिक्षा के नाम पर पूरे देश में एक
बहुत बड़ा प्रपंच खड़ा हुआ हैI किंतु औपचारिक शिक्षा में उसे पर्याप्त स्थान नहीं हैI शिक्षा नीति के प्रारूप में व्यवसायिक
शिक्षा को जोड़ा गया हैI नौवीं क्लास से 12वीं के स्तर
पर 40 विषयों के
गुणांक में से 15 व्यवसायिक
शिक्षा के हैंI इस प्रकार व्यवसायिक शिक्षा को मुख्य शिक्षा का भाग बनाया गया हैI
(8) पूर्ण
स्वायत्तता : राष्ट्रीय
शिक्षा आयोग से प्रारंभ स्वायत्तता का विषय शिक्षा संस्थानों तक बढ़ाया गया हैI उच्च
शिक्षा में सभी महाविद्यालयों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करने की अनुशंसा प्रारूप
में हैI महाविद्यालयों को तो शैक्षिक प्रशासनिक और आर्थिक स्वायत्तता दी गई हैI व्यापारिक
रूप से चलने वाले शिक्षा संस्थानों के नियंत्रण की भी सुचारू व्यवस्था करना आवश्यक
हैI किसी भी निजी संस्थान को व्यापारिक संस्थान खोलने की अनुमति प्रदान की जाए
और उसे समाज में सही ढंग से प्रकट किया जाए ताकि अभिभावक निर्णय कर सके कि उन्हें
सेवा भाव संस्थान में संस्थान लेना प्रवेश लेना है या व्यापारिक संस्थान मेंI
(9) शिक्षण
विधि : वर्तमान में विद्यार्थी केंद्रित या बालक केंद्रित शिक्षा की चर्चा होती हैI इस हेतु
अनेक उपाय किए गए हैं उनमें से कई तो ऐसे हैं जो शिक्षकों को विवश करने वाले हैंI अनेक
शिक्षक इन उपायों से स्वयं को बंधा हुआ महसूस करते हैंI भारत का
आदर्श अध्ययन केंद्रित तथा शिक्षक
आधारित शिक्षा हैI इस राष्ट्रीय शिक्षा प्रारूप में इन दोनों बातों को महत्व दिया गया हैI अध्ययन का
दायित्व विद्यार्थी का हैI शिक्षक तो मौत दर्शक और सहयोग की भूमिका में होता हैI नवी कक्षा
के गुणांक व्यवस्था लगने से अध्ययन का दायित्व छात्रों पर होगाI दूसरी ओर
पाठ्यक्रम निर्धारण की जिम्मेदारी शिक्षकों पर दी गई हैI यदि दोनों
अपनी भूमिकाओं का सही निर्वहन करेंगे तो गुरुकुल जैसी आदर्श शिक्षा के निर्माण की
संभावना इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हैI
(9) समाज
पोषण : भारत में
सदैव शासन मुक्त शिक्षा व्यवस्था की बात की गई हैI किंतु इसका अर्थ वर्तमान में निजीकरण से
नहीं रहा हैI शिक्षा सदा ही समाज का दायित्व रहा हैI शिक्षा व्यवस्था समाज पोषित हो ऐसी
अपेक्षा की जाती रही हैI शिक्षा नीति के प्रारूप में प्रशासन में समाज के सहभाग की व्यवस्था तो है
किंतु निजी के स्थान पर सामाजिक संस्थान की बात होना भी आवश्यक हैI व्यापारी
निजी शिक्षा संस्थानों के साथ सेवाभावी सामाजिक संस्थानों को भी गैर सरकारी होने
के कारण निजी कहना और उसके नियंत्रण के लिए भी वही मापदंड का प्रयोग करना उचित
नहीं हैI इस विसंगति को दूर करने से हर स्तर पर समाज के सहभाग को बढ़ाया जा सकेगाI
(10) वित
विपुलता : अनेक वर्षों से सभी शैक्षिक संगठन यह
मांग करते रहे हैं कि शिक्षा मद में सरकार को जीडीपी के 6% तक बढ़ाया जाएI व्यापारिक
संस्थानों को भी सीएसआर कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के माध्यम से शिक्षा में
योगदान करने का प्रावधान विधि में सुधार द्वारा करने की बात नीति के प्रारूप में
की गई हैI यदि उचित राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ सुझाव को क्रियान्वित किया जाता है
तो शिक्षा के क्षेत्र में विपुल मात्रा में वित्त की उपलब्धि हो सकेगी और सभी
शिक्षकों को नियमित करके करने जैसे क्रांतिकारी उपायों को लागू किया जा सकेगाI
(11) वैश्विकता : भारत में ज्ञान के क्षेत्र में कभी सीमाओं का निर्धारण नहीं किया गयाI हमारे
शिक्षक सारे विश्व में शिक्षा प्रदान करते रहे हैंI सारे विश्व के जिज्ञासु भारतीय
विश्वविद्यालयों में आकर ज्ञान प्राप्त करते रहे हैंI विदेशी
शासन के बाद स्थिति में परिवर्तन हुआ और हम अपने राजनीतिक सीमाओं में सिमट गएI वर्तमान
में भारतीय विश्वविद्यालयों को विदेशों में शिक्षा देने का अधिकार नहीं हैI विदेशी
छात्रों के प्रवेश की भी अत्यंत सीमित संभावना अभी भारत के विश्वविद्यालयों में हैI शिक्षा
नीति का प्रारूप सीमाओं को खोलता हैI विदेशी विश्वविद्यालयों का भारत में
स्वागत करने के साथ ही भारतीय विश्वविद्यालयों के विदेशों में कैंपस खोलने की बात
शिक्षा नीति ने की हैI विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में आने पर कोई आपत्ति नहीं है केवल यह
बात स्पष्ट होनी चाहिए कि भारत में उन्हें कोई भी विशेष सुविधाएं प्रदान नहीं की
जाएंगीI जो विधि अथवा भारतीय कानून भारतीय विश्वविद्यालयों पर लागू होते हैं
उन्हीं के द्वारा यह विदेशी संस्थान संचालित किए जाएंगेI वर्तमान
प्रारूप में यह बात इतनी स्पष्ट रूप से नहीं कही गई हैI अतः इस पर
और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता हैI
(12) आधार
पाठ्यक्रम : प्रारंभ से उच्च शिक्षा तक सभी वर्ष विशेष विषयों के साथ ही आधे
अंकों का आधार पाठ्यक्रम यानी फाउंडेशन कोर्स अनिवार्य किया गया हैI यह शिक्षा
की समग्रता के लिए आवश्यक हैI चाहे जिस भी विषय के विशेषज्ञ हमें
बनाने हैंI कुछ मूलभूत बातें सभी के लिए अनिवार्य होती हैI देश का
इतिहास, भूगोल, उसकी परंपराओं का ज्ञान, साथ ही सामान्य नागरिक नियम जैसे सड़क पर
कैसे चला जाए, स्वच्छता के नियम आदि का भी शिक्षा के औपचारिक रूप में प्रावधान
होना आवश्यक हैI समय का मूल्य, समय का नियोजन, कठोर समय पालन जैसे विषय भी इस आधार
पाठ्यक्रम का अंग बनने चाहिएI पर्यावरण के प्रति सजगता, सामान्य
वित्तीय अनुशासन, बैंक आदि के बारे में भी जानकारी क्रमशः अधिक व्यवहारिक रूप से
आधार पाठ्यक्रम में सम्मिलित की जा सकती हैI
(13) भारत
बोध पाठ्यक्रम : इस के अंतर्गत देश के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक ज्ञान के बारे
में पाठ्यक्रम की बात भी शिक्षा नीति के प्रारूप में की गई हैI वर्तमान
में उत्तर प्रदेश के ‘राष्ट्र गौरव’ नाम से इस प्रकार के पुस्तक प्रत्येक स्तर पर
पाठ्यक्रम का अंग हैI शिक्षा नीति के प्रारूप में भारत की ज्ञान परंपरा, गौरव बिंदु, ज्ञानिक
परंपरा आदि को सम्मिलित कर एक भारत बोध पाठ्यक्रम हर स्तर पर समाविष्ट करने का
सुझाव दिया गया हैI ऐसा क्रमिक पाठ्यक्रम तैयार किया जाए ताकि प्राथमिक स्तर से ही अर्थात
कक्षा एक से पोस्ट ग्रेजुएशन तक भारत के बारे में पूरी जानकारी विद्यार्थियों को
प्रदान की जा सकेI
(14) उद्योग
का सहभाग : वित विपुलता हेतु आर्थिक योगदान के साथ ही शैक्षिक रूप से उद्योग
जगत का सहभाग शिक्षा में होI ऐसी अनुशंसा इस प्रारूप में हैI पाठ्यक्रम
निर्धारण अनुसंधान तथा शिक्षकों को कार्य अनुभव जैसे उपायों से उद्योग जगत को
शैक्षिक गतिविधियों में भागीदार बना कर उच्च शिक्षा को अधिक व्यवहारिक बनाया जा
सकता हैI उच्च शिक्षा में अध्यापकों की नियुक्ति में भी उद्योग अनुभव को शैक्षिक
अनुभव के बराबर का स्थान दिया गया हैI इसमें उद्योग का प्रत्यक्ष अनुभव
प्राप्त लोग भी अध्यापक बन सकेंगेI ऐसे अध्यापक अधिक परिणाम कार्य सिद्ध
होंगेI
(15) कला
और सामाजिक विषय के राष्ट्रीय महत्व के संस्थान : कला-साहित्य
में रुचि रखते हुए भी केवल सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण अनेक छात्र आईआईटी में
प्रवेश लेते हैंI मौलिक शिक्षा के प्रति छात्रों का रुझान बढ़ाने हेतु नई शिक्षा नीति में ‘इंडियन
इंस्टीट्यूट ऑफ लिबरल आर्ट्स’ तथा अनुवाद के लिए ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ
ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन’ का सुझाव दिया गया हैI इसी प्रकार सामाजिक शास्त्र के लिए ‘इंडियन
इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज’ तथा भाषा के लिए ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ लैंग्वेज
एंड लिंग्विस्टिक्स’ का भी विचार किया जाना चाहिएI खेल तथा युद्ध-विद्या के लिए भी
राष्ट्रीय महत्व के संस्थान खोले जाने चाहिए ताकि प्रतिभा के अनुसार प्रतिष्ठित
उच्च शिक्षा का चयन विकल्प हर मेधावी छात्र के पास होI
(16) भारत
केंद्रित : नई शिक्षा
नीति के प्रारूप में यह विशेषता है कि इसमें
सभी स्तरों पर भारत को केंद्र में रखा गया हैI भारत की परिस्थितियों के अनुसार नीतियों
का सुझाव दिया गया हैI वैश्विक स्तर पर तथा प्रतिस्पर्धा की चर्चा तो है किंतु विश्व में स्थान
प्राप्त करने के लिए अंधानुकरण की बात नहीं बल्कि वैश्विक बातों को अन्य देशों से
खुलकर स्वीकार करने की संभावना इस प्रारूप में हैI इस प्रारूप में चिकित्सा शिक्षा के बारे
में विस्तृत योजना दी है जो भारत की परिस्थितियों के अनुसार हैI जैसे जिला
स्तर के प्रत्येक चिकित्सालय को शिक्षा के बनाने की बात हैI जिससे
पर्याप्त संख्या में आवश्यक चिकित्सकों का निर्माण किया जा सकेI ग्रामीण
शिक्षकों की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए इस हेतु विशेष प्रावधान की चर्चा का
रूप करता हैI ऐसी अनेक भारत के लिए विशिष्ट बातें इस नई शिक्षा नीति में दी गई हैI यदि सही ढंग
में क्रियान्वित की जाए तो एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैंI
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