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व्यापार-युद्ध की आहट में भारत की चौकसी |
इन दिनों अमेरिका कई सैनिक मोर्चों से विदा ले
रहा है या सैन्य हस्तक्षेप टालने का प्रयास कर रहा है | अफगानिस्तान में तालिबान
के साथ कई दौर की शांतिवार्ता हो चुकी है उत्तर कोरिया के तानाशाह से भी परमाणु बम
का बटन कुछ दूर कर दिया गया है | इस समय अमेरिका खाड़ी के देश ईरान के विरुद्ध अपना
नया सैनिक मोर्चा खोलने को आमदा है | इसकी भूमिका अमेरिका ने काफी पहले लिखनी शुरू
कर दी थी जब अमरीकी राष्ट्रपति ने ईरान के साथ परमाणु समझौता रद्द करके ईरान पर
परमाणु संधि की शर्तों के उल्लंघन का आरोप लगाकर उसे आर्थिक रूप से कमजोर करने के
लिए आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए है | ईरान की तेल आधारित अर्थवयवस्था मूलतः निर्यात
पर ही आधारित है | पश्चिम के ज्यादातर देशों ने पहले ही ईरान से तेल आयात करना बंद
कर दिया था | भारत और चीन भी मई माह से ईरान से तेल आयात बंद कर चुके है |
ईरान के भारत के साथ कई हित जुड़े है | भारत और
ईरान के सांस्कृतिक सम्बन्ध काफी पुराने है | भारत द्वारा तेल आयात में ईरान कई
सुविधाएँ देता आ रहा था जिसमे भुगतान में 60 दिनों की क्रेडिट की सुविधा थी | भारत
को अब तेल आयात के अन्य स्त्रोतों पर निर्भर रहना होगा तथा उसे वे विशेष सुविधाएँ
भी नहीं मिलेंगी जो ईरान से मिलती थी | भारत की अर्थवयवस्था पर इसका अतिरिक्त भार
पड़ेगा जिसकी भरपाई करने से अमेरिका भी साफ़ इनकार कर चुका है | अगर खाड़ी में सैनिक
टकराव बढ़ा तो भारत की कच्चे तेल की सप्लाई पर असर पड़ेगा जिससे तेल संकट खड़ा होगा
और भारत का व्यापार घाटा बढेगा |
इस समय चीन के साथ अमेरिका व्यापारिक मोर्चे पर
अपना ज्यादा ध्यान दे रहा है | अमेरिकी सरकार अब अपनी व्यापारिक कंपनियों के लिए
कुटनीतिक मोर्चों पर लड़ रही है | ‘ट्रम्प काल‘ में यह ट्रेंड ज्यादा देखने को मिल
रहा है और अमेरिका के निशाने पर चीन और भारत हैं | चीन के साथ तो वह खुल कर
मोल-भाव–दबाव की स्थिति मे है | इस व्यापार युद्ध में अमेरिका टकराव टालने के लिए
चीन से कई दौर की वार्ताएं कर चुका है | चीन भी स्थिति को भांप चुका है तथा उसकी
अर्थव्यवस्था में नर्मी और बढती लागत के कारण वहां से करीब 200 कंपनियां अपनी
निर्माण इकाइयाँ भारत में स्थानांतरित करने को तैयार बैठी है |
भारत में भी मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल से ही
व्यापारिक मोर्चे पर ध्यान दिया जा रहा है | घरेलू उधोगों के सरंक्षण के लिए काफी
सजगता दिखाई जा रही है इसलिए सरकार ने अमेरिका से आयातित 200 से ज्यादा उत्पादों
पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है | इससे अमेरिका की भोहें तन गई है | अमेरिका का आरोप है
कि विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत द्वारा ही सबसे ज्यादा औसतन 13.8 प्रतिशत
आयात शुल्क लगाया जा रहा है | बदले की कार्यवाही में अमेरिका ने प्राथमिकताओं की
सामान्यीकरण प्रणाली (GPA) द्वारा प्रदत शून्य शुल्क पर भारत से आयात की
सुविधा को बंद कर दिया है |इस प्रावधान के तहत भारत से अमेरिका को 5.6 बिलियन डॉलर
का ड्यूटी फ्री निर्यात किया जाता था |
भारत की नई ई-कॉमर्स पालिसी के प्रावधानों से भी
अमेरिकी अमेज़न और वालमार्ट जैसी कंपनियां परेशान है क्योंकि इस पालिसी में ये
कंपनियां कोई भी ऐसा उत्पाद अपने प्लेटफार्म पर नहीं बेच सकती जिसका निर्माण उनकी
कोई हिस्सेदार कंपनी द्वारा किया गया हो |इस पालिसी में इन कम्पनियों के ‘कैश
बर्निंग मॉडल’ पर भी अंकुश लगाने का प्रावधान है |
एक अन्य मुद्दा भारत सरकार द्वारा ‘रुपे-कार्ड’ के
प्रोत्साहन को लेकर है | भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था बन चूका है | डिजिटलीकरण के कुछ
अपने खतरे भी है | इसमें डाटा की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है | अभी तक ‘VISA’ और ‘Mastercard’ जैसी अमेरिकी
कम्पनियों का ही इस क्षेत्र में बोल-बाला था | अब रुपे-कार्ड ने इन अमेरिकी
कंपनियों की बाज़ार हिस्सेदारी में सेंध लगाने का काम किया है जिससे इन कंपनियों के
लाभांश पर फ़र्क पड़ना तय है | भारत सरकार और रिज़र्व बैंक ये भी चाहते है कि ये
कम्पनियां अपने भारत से सम्बंधित अपना डाटा भारत में ही स्टोर करें | जबकि अमेरिकी
सरकार और उसकी कंपनियों का तर्क है कि भारत में डाटा सेंटर बनाने से उनकी लागत में
वृद्धि होगी तथा डाटा की सुरक्षा का खतरा बना रहेगा | इन सभी मुद्दों पर आने वाली
सरकार को प्राथमिकता के आधार पर कुटनीतिक जीत हासिल करनी होगी |
भारत अपनी 130 करोड़ आबादी को सस्ती और
गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाएँ देना चाहता है | कई अमेरिकी कंपनियां चिकित्सा
उपकरणों का भारत को निर्यात बहुत ऊँचे दामों पर करती है | भारत सरकार द्वारा ‘कीमत
सीमा निर्धारण’ के माध्यम से कीमतों के निर्धारण को लेकर भी ट्रम्प प्रसाशन दबाव
बनाने के प्रयास में है | अगर ‘आयुष्मान-भारत’ योजना को सही तरीके से लागू कर दिया
गया तो चिकित्सा उपकरणों का बाज़ार 20 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है |
अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले सामान पर आयात
शुल्क 10 प्रतिशत से बढाकर 25 प्रतिशत कर दिया है | इससे चीनी माल का अधिशेष भारत
जैसे देशों में सस्ते दामों में डंपिंग का खतरा बढ़ गया है | इस कारण भारत में
स्टील उद्योग पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ सकता है जो पहले भी इसकी मार झेल चुका है |
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढती रस्सा-कस्सी के कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर भी विपरीत
प्रभाव पड़ सकता है | भारत की नई सरकार को राष्ट्रीय-हितों के प्रति सचेत रहने का समय
है |
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