आतंक का नया साथी है चीन
अभी
हाल
ही
मे
पाकिस्तान
समर्थित
आंतकवादी
संगठन
जैश-ए-मोहम्मद
ने
कश्मीर
के
पुलवामा
में
केन्द्रीय
रिज़र्व
पुलिस
बल
के
वाहन
पर
किये
गए
हमले
के
बाद
सम्पूर्ण
विश्व
से
भारत
के
पक्ष
में
टिपण्णी
की
गई
लेकिन
भारत
के
पडोसी
देश
चीन
की
तरफ
से
इस
प्रकार
के
प्रयास
नहीं
हुए
बल्कि
उसने
एक
बार
फिर
जैश-ए-मोहम्मद
के
सरगना
मौलाना
मसूद
अजहर
को
सयुक्त
राष्ट्र
संघ
द्वारा
अंतर्राष्ट्रीय
आतंकी
घोषित
करने
में
अपनी
टांग
अड़ा
दी
| इससे चीन का
असली
चेहरा
सामने
आ
गया
है
| चीन सयुक्त राष्ट्र
संघ
का स्थाई
सदस्य
होने
का
नाजायज
फायदा
उठा
रहा
है
| सयुक्त राष्ट्र
संघ
की ऐसी
लाचारी
को
देखने
के
बाद
तो
इस
अंतर्राष्ट्रीय
संस्था
में
सुधार
की
मांग
और
भी
बढ़
गई
है
| पिछले साल दलाई
लामा
की
अरूणाचल
प्रदेश
की
यात्रा
और
उसके
बाद
चीन
द्वारा
भारत
विरोधी
व्यक्तव्यों
से
चीन
का
चरित्र
सबके
सामने
आ
गया
था
।
दलाई
लामा
और
बौद्ध
लामाओं
के
अहिंसक
और
नैतिक
विरोध
से
आखिर
चीन
डरता
क्यों
है? वास्तव
मे
दलाई
लामा
और
बौद्ध
लामाओं
का
चीन
से
विस्थापन
चीन
की
विस्तारवादी
और
अनैतिक
नीतियों
का
जीता-जागता
सबूत
है
दलाई
लामा
की
उपस्थित
चीन
को
नैतिक
रूप
से
कमजोर
करती है |
चीन
को
यह
बात
समझी
लेनी
चाहिए
कि
अरूणाचल
प्रदेश
भारत
का
अभिन्न
अंग
है।
तिब्बती
शराणार्थियों
की
दूसरी
पीढ़ी
भी
इतनी
सहनशील
नही
है।
वर्ष
1959 और 1962 का
ज़माना
भी
काफी
पीछे
जा
चुका
है।
भारत
की
विदेश
नीति
के
बारे
मे
भी
वर्तमान
सरकार
आने
के
बाद
अंदाजा
लगाना
मुश्किलहोता
जा
रहा
है।
पाकिस्तान
के
खिलाफ
‘‘सर्जिकल स्ट्राईक’’
के
बाद
यह
बात
चीन
को
स्पष्ट
हो
जानी
चाहिए। ये
सर्वविधित
है
कि
चीन
पाक
कब्जे
वाले
कश्मीर
से
होकर
गवादर
बंदरगाह
तक
चीन-पाकिस्तान
आर्थिक
गलियारें
का
निर्माण
भारत
के
लगातार
विरोध
के
बावजूद
जारी
रखे
हुए
है।
चीन
ओर
पाकिस्तान
के
आर्थिक
हित
सांझा
होने
के
कारण
चीन-भारत
द्वारा
मौलाना
मसूद
अजहर
को
अंतर्राष्ट्रीय
आतंकवादी
घोषित
करवाने
की
कोशिशों
को
हर
बार
संयुक्त
राष्ट्र
संघ
में
अपनी
‘‘वीटो पॉवर’’ द्वारा
रोड़ा
अटकाता
रहा
है।
वह
भारत
को
परमाणु
अपूर्तिकर्ता
समूह
(NSG) मे भी
शामिल
नही
होने
देना
चाहता
तथा
भारत
के
सभी
पड़ोसी
मित्र
देशों
को
अत्याधिक
वितिय
सहायता
देकर
अपने
प्रभाव
मे
लेने
की
रणनीति
पर
कार्य
कर
रहा
है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक प्राधिकरण की अवहेलना करता है चीन
पूरा
विश्व
जानता
है
कि
भारत
ने
कभी
भी
दलाई
लामा
या
तिब्बती
शरणार्थियों
का
चीन
के
विरूद्ध
राजनीतिक
और
कुटनीतिक
प्रयोग
नही
किया
लेकिन
दलाई
लामा
का
वर्तमान
दौरा
पिछले
दौरों
से
अलग
था।
गृहराज्य
मंत्री
श्री
किरन
रिज्जू
का
उनके
साथ
जाना
निश्चित
ही
कुछ
नये
अर्थ
निकालता
है।
यह
भारत
की
चीन
के
मामले
में
अभी
तक
अपनाई
गई
विदेश
नीति
से
कुछ
कदम
आगे
है।चीन
को
यह
समझ
लेना
चाहिए
कि
द्विपक्षीय
संबंधो
को
सौहार्दपूर्ण
बनाये
रखने
की
जिम्मेदारी
सिर्फ
भारत
की
ही
नही
है।
बल्कि
चीन
की
भी
है
लेकिन
इतिहास
गवाह
है
कि
चीन
ने
कभी
भी
इस
मामले
मे
बडप्पन
नही
दिखाया
और
हमेशा
ही
सामन्य
होते
संबंधों
के
साथ
साथ
दबाव
की
नीति
अपनाते
हुए
सीमा
का
अतिक्रमण
करने
और
भारतीय
हितों
को
नुकसान
पंहुचाने
से
बाज़
नही
आया।
चाहे
चीनी
राष्ट्रपति
की
अहमदाबाद
यात्रा
के
समय
‘‘दौलत बेग ओल्डी’’
में
चीनी
अतिक्रमण
हो
या
NSG
अथवा
मसूद
अजहर
का
मुद्दा, चीन
हमेशा
ही
द्विपक्षीय
मुद्दों
की
जिम्मे दारियों
को
नज़रअंदाज
करता
है।
आर्थिक
रूप
से
सक्षम
चीन
दक्षिण
एशिया
क्षेत्र
के
साथ
साथ विश्वशांति
के
लिए
भी
खतरा
बनता
जा
रहा
है।
चीनी
दादागिरी
का
एक
उदाहरण
दक्षिण
चीन
सागर
में
अंतर्राष्ट्रीय
न्यायिक
प्राधिकरण
के
फैसले
की
अवहेलना
है।
सुरक्षा
की
दृष्टि
से
भी
‘‘चीन पाकिस्तान
आर्थिक
गलियारा’’
भारत
के
लिए
चिंता
का
विषय
है।
अब
चीन
ग्वादर
बंदरगाह
के
विकास
का
बहाना
बनाकर
अरब
सागर
में
अपनी
नौसैनिक
उपस्थिति
बना
कर
रखेगा।
यह
भारत
के
विरूद्ध
एक
नये
मोर्चे
के
खुलने
जैसा
है
भारत
को
भी
चाहबार
बंदरगाह
का
तेजी
से
विकास
कर
चीन
को
चुनौती
पेश
करते
हुए
मध्यपूर्व
के
देशों
में
अपनी
सामरिक
और
व्यापिरक
उपस्थिति
दर्ज
करवानी
चाहिए।
चाहबार
बदंरगाह
की
मदद
से
अफगानिस्तान
तक
भी
भारतीय
सहायता
सामग्री
और
व्यापारिक
सामानों
की
खेप
निर्बाध
रूप
से
भेजी
जा
सकेगी।
जिसमें
पाकिस्तान
अभी
तक
रोड़ा
अटकाता
था।
भारत
को
चीन
की
चालों
को
समझ
कर
अपनी
रणनीति
में
परिवर्तन
करना
होगा।
चीन
भारत
को
हर
तरफ
से
घेरने
की
कोशिश
कर
रहा
है।
चाहे
वह
सीमा
पर
अतिक्रमण
हो
या
पूर्वोतर
के
आतंकवादी
गुटों
को
प्रत्यक्ष
व
अप्रत्यक्ष
रूप
से
मदद।
बंगलादेश, म्यांमार, श्रीलंका, मालद्वीप
और
पाकिस्तान
मे
बंदरगाहों
का
निर्माण
भारत
के
खिलाफ
‘‘मोतियों की माला’’
चीनी
रणनीति
का
हिस्सा
है
जिससे
वह
भारत
का
बंगाल
की
खाड़ी, हिंद
महासागर
और
अरब
सागर
में
घेरने
की
कोशिश
कर
रहा
है।
चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 63 अरब डॉलर तक पहुंचा
इन
परिस्थितियों
के
बावजूद
भी
चीन
भारत
की
125 करोंड़ की आबादी
के
बाज़ार
को
नजरअंदाज
नही
कर
सकता।
भारत
की
जनता
को
चीन
की
कुचेष्टाओं
और
षड्यंत्रों
के
बारे
मे
जागरूक
किया
जाना
चाहिए।
भारतीय
समाज
में
चीन
और
चीनी
सामान
के
प्रति
नफ़रत
बढ़ती
जा
रही
है।
पिछली
दीवाली
पर
चीन
निर्मित
लड़ियों
और
दूसरे
सामानों
की
बिक्री
में
निर्णायक
कमी
आई
थी।
अभी
हाल
ही
मे
नोएडा
में
स्थित
एक
चीनी
मोबाईल
कम्पनी
में
भारतीय
तिरंगें
की
अपमान
की
घटना
हुई
थी
जिससे
तनाव
व्याप्त
हो
गया
था।
चीन
को
यह
बात
गांठ
बांध
लेनी
चाहिए
कि
व्यापार
और
तकरार
साथ
साथ
नही
चल
सकते।
उसे
भारत
के
प्रति
अपनी
नीतियों
की
समीक्षा
करनी
होगी
तथा
बराबरी
के
आधार
पर
व्यापार
करना
पड़ेगा।
क्योंकि
वर्ष
2017-2018 में चीन
के
साथ
भारत
का
व्यापार
घाटा
करीब
63 अरब डॉलर तक
पंहुचकर
व्यापारिक
असंतुलन
की
तरफ
इशारा
कर
रहा
है।
अगर
यह
स्थिति
जारी
रहती
है
तो
यह
भारत
के
सामरिक
मोर्चे
के
लिए
भी
उचित
नही
है।
चीन के सस्तें स्टील पर भारत में लगेगा अंकुश
भारत
सरकार
ने
इस
दिशा
में
कदम
भी
बढाने
शुरू
कर
दिये
है।
केंद्रिय
इस्पात
मंत्री
चौधरी
विरेंद्र
सिंह
ने
पिछले
दिनों
नई इस्पात
नीति-2017
के
बारे
में
बताते
हुए
कहा
कि
सरकार
की
मंशा
घरेलू
इस्पात
उद्योग
को
प्रोत्साहित
करने
की
है।
सरकार
चाहती
है
कि
आधारभूत
सरंचना
संबंधी
परियोजनाओं
में
देश
में
बने
इस्पात
को
तरजीह
दी
जाएगी।
इससे
चीन
द्वारा
सस्तें
स्टील
को
भारत
में
निर्यात
करने
पर
कुछ
अंकुश
लगेगा।
चीन
ने
भारत
से
सीमा
संबंधी
सुधार
भले
न
किए
हो
लेकिन
वह
आर्थिक
मोर्चे
पर
अति
महत्वाकांक्षी
है।
वह
वर्तमान
विकास
दर
को
लगातार
जारी
रख
कर विश्व स्तर
पर
खुद
को
शीर्ष
पर
देखना
चाहता
है।
भारत
को
भी
उसे
आर्थिक
मोर्चे
पर
कड़ी
टक्कर
देने
की
जरूरत
है।
इसके
लिए
भारत
को
अपने
यहां
उद्यमिता
का
वातावरण
बनाना
होगा
तथा
आधारभूत
सरंचना
व
वित
पोषण
के
द्वारा
विनिर्माण
क्षेत्र
को
बढ़ावा
देकर
ही
हम
चीन
के
आयात
पर
निर्भर
न
रह
कर
अपना
व्यापार
घाटा
कम
करते
हुए
चीन
के
साथ
आंख
से
आंख
मिलाकर
बात
कर
सकते
है
लेकिन
इसके
लिए
हमें
सुधारों
का
काफी
लंबा
रास्ता
तय
करना
पड़ेगा
व
नीति
निर्माण, कार्यन्वयन
में
फुर्ति
दिखानी
होगी।
इस
दिशा
में
सरकार
द्वारा
शुरू
की
गई
‘‘स्टैंड-अप, स्टार्ट-अप, कौशल
विकास
तथा
मेक-इन-इंडिया’’
जैसी
योजनाएँ
महत्वपूर्ण
भूमिका
निभा
सकती
है।
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